नई दिल्‍ली। 12 जुलाई । राष्‍ट्रीय हरित अधिकरण ने उत्तर प्रदेश सरकार को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है कि प्रस्‍तावित “कांवड़मार्ग” के निर्माण के दौरान “पेड़ों की अवैध कटाई” न हो। अधिकरण (एनजीटी) ने सर्वे ऑफ इंडिया से ऊपरी गंगा नहर के किनारे की 111 किलोमीटर लंबी भूमि की सैटेलाइट तस्वीरें मांगी हैं। दरअसल उत्तर प्रदेश सरकार ने कांवड़ यात्रा को सुविधाजनक बनाने के लिए गाजियाबाद के मुरादनगर को उत्तराखंड सीमा के पास पुरकाजी से जोड़ने के लिए “कांवड़ मार्ग” नामक सड़क परियोजना प्रस्तावित की है। “कांवड़ मार्ग” के लिए दो लेन की सड़क का निर्माण किया जाएगा। इस पर लगभग 658 करोड़ रुपये खर्च होंगे। प्रस्तावित सड़क परियोजना का काम उत्तर प्रदेश लोक निर्माण विभाग करेगा और इसका वित्तपोषण राज्य सरकार करेगी। अधिकारियों ने बताया कि यह सड़क हल्के वाहनों के लिए बाईपास का काम करेगी और वार्षिक कांवड़ यात्रा के दौरान हरिद्वार आने-जाने वाले कांवड़ियों के लिए वैकल्पिक मार्ग होगी। अधिकारियों ने बताया कि ऊपरी गंगा नहर के एक तरफ नहर के पूर्वी तटबंध पर पहले से ही पक्की सड़क है, तथा प्रस्तावित दो नई लेन पश्चिमी तटबंध के साथ-साथ चलेंगी। तीर्थयात्री अधिकतर दिल्ली-मेरठ मार्ग का उपयोग करते हैं, इससे कांवड़ सीजन के दौरान व्यस्त सड़क को बंद करना पड़ता है।
राष्‍ट्रीय हरित अधिकरण ने एक समाचार पत्र हिंदुस्तान टाइम्स की 1 फरवरी की रिपोर्ट पर स्वतः संज्ञान लेते हुए मामले की सुनवाई की है। रिपोर्ट में बताया गया है कि कांवड़मार्ग के लिए किस तरह उत्तर प्रदेश सरकार के वन विभाग ने गाजियाबाद, मेरठ और मुजफ्फरनगर के तीन वन प्रभागों के संरक्षित वनों में 100,000 (112,722) से अधिक पेड़ों और झाड़ियों को काटने की अनुमति दी है। न्यायाधिकरण की मुख्य पीठ ने इस मामले में उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के अधिकारियों को प्रतिवादी बनाया है। पेड़ों की सुरक्षा के लिए दो हस्तक्षेपकर्ता भी इस मामले में शामिल हुए हैं। इनमें से एक मेरठ के स्थानीय विधायक हैं, जबकि अन्य गाजियाबाद के हैं, जिनमें पूर्व नगर पार्षद राजेंद्र त्यागी और पर्यावरणविद् सतेंद्र सिंह और विक्रांत तोंगड़ शामिल हैं। ट्रिब्यूनल ने 8 जुलाई को मामले की सुनवाई करते हुए पाया कि उत्तर प्रदेश के वकीलों ने प्रस्तुत किया है कि प्रस्तावित सड़क की मूल चौड़ाई 20 मीटर थी, जिसे कुछ स्थानों पर पेड़ों की कटाई को कम करने के लिए घटाकर 15 मीटर कर दिया गया है, लेकिन प्रस्तावित हस्तक्षेपकर्ताओं का आरोप है कि पेड़ों को अनुमत सीमा से कहीं अधिक काटा गया है। ट्रिब्यूनल ने कहा, “सही स्थिति का पता लगाने के लिए, हम सर्वे ऑफ इंडिया को विचाराधीन खंड की उपग्रह छवियां दाखिल करने का निर्देश देते हैं, जिसमें नहर के दोनों ओर काटे गए पेड़ों की सीमा दिखाई गई हो…” भारतीय सर्वेक्षण देश की केंद्रीय इंजीनियरिंग एजेंसी है, जो मानचित्रण और सर्वेक्षण का प्रभारी है। हस्तक्षेपकर्ताओं ने यह भी बताया कि सड़क को चौड़ा करने की आड़ में पेड़ों की अवैध कटाई की जा रही है और उससे संबंधित एफआईआर का हवाला दिया है। इस पर, एनजीटी ने राज्य के अधिकारियों को निर्देश दिया कि वे यह सुनिश्चित करें कि प्रस्तावित सड़क की 20/15 मीटर चौड़ाई की अनुमति/निर्णय से परे पेड़ों की अवैध कटाई न हो।” इस मुद्दे से संबंधित, ट्रिब्यूनल ने पाया कि हस्तक्षेपकर्ताओं ने आरोप लगाया है कि यद्यपि नहर के दाईं ओर 20/15 मीटर तक सड़क के निर्माण की अनुमति दी गई थी, लेकिन कथित तौर पर 40 मीटर की चौड़ाई के भीतर पेड़ों को काटा गया था।
यूपी-पीडब्ल्यूडी के कार्यकारी अधिकारी और परियोजना के नोडल अधिकारी संजय सिंह ने गुरुवार को मामले पर टिप्पणी मांगने के लिए कॉल का जवाब नहीं दिया। ट्रिब्यूनल ने हस्तक्षेपकर्ताओं का हवाला देते हुए कहा कि नहर के दाईं ओर पहले से ही पांच मीटर कच्ची सड़क है और पेड़ों की कटाई को कम करने के लिए 15-20 मीटर चौड़ी सड़क (कच्ची सड़क सहित) बनाई जा सकती थी। लेकिन, इसके बजाय यूपी पीडब्ल्यूडी दो अलग-अलग 20 और 15 मीटर चौड़ी सड़कें बना रहा है। ट्रिब्यूनल ने अपने आदेश में कहा, “इसका भी स्पष्टीकरण दिया जाना चाहिए।” न्यायाधिकरण ने काटे गए या काटे जाने वाले पेड़ों की किस्म और संख्या, सक्षम अधिकारियों द्वारा अपेक्षित अनुमति और प्रतिपूरक वनरोपण के उपायों का खुलासा करने को कहा हे। वन विभाग के अधिकारी यह पहले ही कह चुके हैं कि काटे गए पेड़ों/झाड़ियों के बदले प्रतिपूरक वनरोपण गाजियाबाद से लगभग 550 किलोमीटर दूर ललितपुर जिले में किया जाएगा। सुनवाई के दौरान पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के क्षेत्रीय कार्यालय के प्रतिवादी की ओर से पेश हुए वकील राजन कुमार चौरसिया ने कहा कि “रिपोर्ट तैयार की जा रही है और न्यायाधिकरण के समक्ष दाखिल की जाएगी।” एनजीटी ने प्रतिवादियों से रिपोर्ट भी मांगी है और उन्हें 20 मई को सुनवाई की अगली तारीख से कम से कम एक सप्ताह पहले न्यायाधिकरण के समक्ष प्रस्तुत किया जाना है। संपर्क किए जाने पर गाजियाबाद के जिला मजिस्ट्रेट इंद्र विक्रम सिंह ने कहा कि उन्हें अभी तक आदेश की प्रति नहीं मिली है। सिंह ने कहा, “आदेश की प्रति मिलते ही हम उसके अनुसार कार्रवाई करेंगे।” इस परियोजना में उत्तर प्रदेश लोक निर्माण विभाग तथा उत्तर प्रदेश वन विभाग शामिल हैं। अधिकारियों के अनुसार, पूरी परियोजना के लिए लगभग 222.98 हेक्टेयर संरक्षित वन भूमि की आवश्यकता है, जिसमें गाजियाबाद में 24.7 हेक्टेयर, मेरठ में 84.6 हेक्टेयर तथा मुजफ्फरनगर में 113.68 हेक्टेयर भूमि शामिल है। आंकड़े यह भी बताते हैं कि मुजफ्फरनगर में इस परियोजना के लिए लगभग 16,873 पेड़/झाड़ियाँ काटी जाएँगी, मेरठ में 666,85 और गाजियाबाद में लगभग 291,64 पेड़/झाड़ियाँ काटी जाएँगी। पर्यावरणविदों ने इतनी बड़ी संख्या में पेड़ों को काटे जाने के कदम की निंदा की है और कहा है कि इससे क्षेत्र में जैव विविधता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। पर्यावरण वकील आकाश वशिष्ठ ने कहा, “अदालत ने रिपोर्ट का संज्ञान लिया है और इससे हरियाली के नुकसान, जैव विविधता को नुकसान जैसे मुद्दे सामने आए हैं। ऊपरी गंगा नहर के पास एक तरफ की सड़क पहले से ही पक्की है और अगर इसे ठीक से लागू किया जाए तो इसका इस्तेमाल वैकल्पिक कांवड़ मार्ग के रूप में किया जा सकता है।”
Translate »