राजीव हर्ष
गंगा केवल नदी नहीं है। गंगा तो मॉं है। हमारा अस्तित्व गंगा से ही है। गंगा हमारी संस्कृति का आधार है। हमारी संस्कृति, हमारा दर्शन गंगा की गोद में ही पनपा। गंगा की गोद ऋिषि मुनियों की तप:स्थली है। गंगा अन्नपूर्णा है। देश की लगभग 40 प्रतिशत आबादी गंगा की गोद में ही बसी है। गंगा ने पहाड़ों की मिट्टी ढो ढो कर जो मैदान बनाए हैं वे दुनिया के सबसे उपजाऊ मैदान हैं। ये मैदान जैव विविधता की दृष्टि से बहुत सम्पन्न है। गंगा का अपने उद्गम से लेकर सागर में विलीन होने तक का सफर 2525 किलोमीटर लम्बा है। अपने इस सफर में गंगा उत्तराखंड से लेकर बंगाल के सुंदरवन तक के विशाल भू-भाग को सींचती है। गंगा के जल को अमृत तुल्य माना जाता है। हिंदुओं के हर संस्कार में गंगा जल का उपयोग किया जाता है। इस लिए गंगा पूजनीय है।